
आजादी के लिए हो गए शहीद
खुशी रामबोस क्रांतिकारी-शिवानी जैन एडवोकेट
ऑल ह्यूमन सेव एंड फॉरेंसिक फाउंडेशन डिस्टिक वूमेन चीफ शिवानी जैन एडवोकेट ने कहा कि
1905 के बंगाल विभाजन के विरोध में बोस आंदोलन में कूद पड़े। 28 फरवरी 1906 को पहली बार इस स्वतंत्रतता सेनानी को गिरफ्तार किया गया।लेकिन अंग्रेजों को चकमा देकर वे भाग निकले। 6 दिसंबर 1907 को खुदीराम ने नारायणगढ़ रेलवे स्टेशन पर बंगाल के गवर्नर की विशेष ट्रेन पर हमला किया, परंतु गवर्नर बच गया।1908 में उन्होंने दो अंग्रेज अधिकारियों वाट्सन और पैम्फायल्ट फुलर पर बम से हमला किया लेकिन वे भी बच निकले. लगभग 2 महीने बाद अप्रैल में फिर से पकड़े गए।
थिंक मानवाधिकार संगठन एडवाइजरी बोर्ड मेंबर एवं अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त साहित्यकार डॉ कंचन जैन ने कहा कि मुज़फ्फरपुर के केंद्रीय कारागार में जिस सेल में इस महान क्रांतिकारी को रखा गया और जेल में जहां उन्हें फांसी की सजा दी गई, वह दोनों स्थल आज भी मुज़फ्फरपुर के केंद्रीय कारागार में संरक्षित हैं।आज मुज़फ्फरपुर केंद्रीय कारागर को शहीद खुदीराम बोस केंद्रीय कारागार के नाम से जाना जाता है।
मां सरस्वती शिक्षा समिति के प्रबंधक डॉ एच सी विपिन कुमार जैन, संरक्षक आलोक मित्तल एडवोकेट, ज्ञानेंद्र चौधरी एडवोकेट, डॉ आरके शर्मा, निदेशक डॉक्टर नरेंद्र चौधरी, शार्क फाउंडेशन की तहसील प्रभारी डॉ एच सी अंजू लता जैन, बीना एडवोकेट आदि ने कहा कि खुदीराम बोस बच्चों पर कोड़ा बरसाने वाले मुजफ्फरपुर के मजिस्ट्रेट किंग्स फोर्ड से काफी नाराज थे।क्रांतिकारियों के दल ने किंग्स फोर्ड को मारने की जिम्मेदारी खुदीराम और प्रफुल्लचंद्र चाकी को दी थी।उन्होंने अपने साथी प्रफुल्लचंद चाकी के साथ मिलकर सेशन जज किंग्सफोर्ड से बदला लेने की योजना बनाई।
उन्होंने कहा कि देश के इतिहास में एक ऐसा नाम दर्ज है जिसने बहुत कम उम्र में देश के लिए अपनी जान न्योछावर कर दी. वो उम्र जब एक युवा अपने करियर और आने वाले भविष्य को लेकर परेशान रहता है, उस उम्र में एक ऐसा क्रांतिकारी निकला जो देश के लिए सूली पर चढ़ गया।महज 18 साल की उम्र में देश के लिए अपनी जान न्योछावर करने वाले खुदीराम बोस को 1908 में 11 अगस्त के ही दिन फांसी दी गई थी।
शिवानी जैन एडवोकेट
डिस्ट्रिक्ट वूमेन चीफ